पितृदोष भाग-1 – सर्वभूत शरणम्

·

·

Post Views: 3 पितृदोष के बारे में आपने सुना होगा। इसे लेकर तरह-तरह की शंकाएं-आशंकाएं भी जरूर मन में होगी। यदि आपकी कुंडली में पितृदोष है तो मन में डर भी होगा। किसी ज्योतिष के पास भी जरूर गए होंगे, इसके निवारण के उपाय खोजने लेकिन आपको या आपके परिवार को फायदा हुआ या इससे

pitra dosh

पितृदोष के बारे में आपने सुना होगा। इसे लेकर तरह-तरह की शंकाएं-आशंकाएं भी जरूर मन में होगी। यदि आपकी कुंडली में पितृदोष है तो मन में डर भी होगा। किसी ज्योतिष के पास भी जरूर गए होंगे, इसके निवारण के उपाय खोजने लेकिन आपको या आपके परिवार को फायदा हुआ या इससे कुछ निजात मिली। निश्चित रूप से आपका जवाब न ही होगा। इसका कारण पितृदोष को लेकर तरह-तरह के भ्रम और भ्रांतियां हैं। कुछ ज्योतिष या पंडित कहते हैं कि फलां पूजा करने से यह दोष पूरी तरह खत्म हो जाएगा, बस कुछ हजार रुपये खर्च करने होंगे। कोई कहता है कि फलां अनुष्ठान या हवन करने से दोष खत्म हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि जो उपाय उन्होंने बताए वे गलत या निष्फल थे लेकिन फिर भी क्या कारण है कि आपको उसका वह फायदा नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। हम आपको बताएंगे कि उपाय करने के बावजूद कुछ लोगों को उसका फल क्यों नहीं मिलता। सबसे पहले यह बात अच्छी तरह समझ लीजिए की पितृदोष कभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं होता। जी हां, कभी समाप्त नहीं होता।  हां, इतना जरूर है कि जो उपाय किए जाते हैं , उनसे इस दोष का प्रभाव निश्चित कम होता है। यदि आपकी कुंडली में पितृदोष का प्रभाव 100 प्रतिशत है तो उपाय करने से उसका नकारात्मक प्रभाव 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है लेकिन 20 प्रतिशत असर तब भी बना रहता है। इसलिए जो ज्योतिष या विद्वान 100 प्रतिशत पितृदोष के निवारण का दावा करता है, उससे दूर रहने में ही भलाई है। इसके निवारण के उपाय इतने सरल हैं कि आप खुद इन्हें कर सकते हैं। हां, कुछ मामलों में जरूर विशेषज्ञों की मदद लेनी पड़ती हैं। लेकिन इतना जरूर जान लें, उपाय आप खुद करें या किसी और से करवाएं, लेकिन उसे पूरे मन, श्रद्धा और मनोभाव से करें। जबरदस्ती या मुहं बनाकर करने से काम नहीं बनेगा। रूठे हुए पितरों को मनाना है तो उनकी मन से सेवा तो करनी ही होगी। तभी वो खुश होकर अपना आशीर्वाद आपके परिवार पर बरसाएं। मुंह बनाने से तो घर आया अतिथि भी बिदक जाता है, यह तो अपने घर के ही पितृ देव हैं। उनकी मन से सेवा करेंगे तो तभी मेवा मिलेगा। 


क्या होता है पितृदोष और क्यों बनता है 


इस संसार में हर मनुष्य जन्म के साथ ही तीन प्रकार के ऋण लेकर आता है। ये ऋण हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण और मातृ-पितृ ऋण। इसे अनिवार्य रूप से चुकाना होता है। जन्म के बाद  यदि इन ऋणों से मुक्ति प्राप्त न की जाए तो जीवन प्राप्ति का अर्थ अधूरा रह जाता है। अगला जन्म लेकर भी इन्हें चुकाना ही पड़ता है। चुकाए बना इस ऋण से मुक्ति नहीं मिल सकती है। व्यक्ति की कुंडली में कुछ ग्रह ऐसे होते हैं, जो यह साफ इंगित करते हैं कि संबंधित जातक पितृ दोष से पीड़ित है। ज्योतिष में ऐसी कुंडली को शापित कहा जाता है। हिन्दू धर्म में पित्तरों को देवतुल्य माना गया है। पितृ का अर्थ है-हमारे पूर्वज। वह कोई भी हो सकते हैं, जैसे-दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, नाना-नानी, मामा-मामी आदि। परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात जब उसकी इच्छाओं और उसके द्वारा छूटे-अधूरे काम को परिजन पूरा नहीं करते तब उसकी आत्मा वहीं भटकती रहती है। वह उन कामों को पूरा करवाने के लिए परिवारजनों पर दबाव डालती है। उनका वायवीय (वायु) शरीर हमें परेशान करता है।  इसी कारण परिवार में शुभ कामों में कमी और अशुभता बढ़ती जाती है। परिवार में पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं होती। इन अशुभताओं का कारण पितृदोष दोष लगता है। हालांकि यह समझना भी यहां जरूरी है कि पितृ दोष पूर्वजों के अभिशाप नहीं होते, बल्कि ऋण होता है और बच्चे होने के नाते उसका भुगतान हमें चुकाना होता है। यह हमारा इस जन्म का कर्तव्य बन जाता है। 

पितृदोष लगने के प्रमुख कारण

 
1. परिवार के स्त्री-पुरुष मृत्यु के बाद पितृ कहलाते हैं। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि मृत्यु के बाद जिस व्यक्ति का श्राद्घ कर्म नहीं किया जाता है ,उन्हें पितृ लोक में स्थान नहीं मिलता है। वह भूत-प्रेत बनकर भटकते रहते हैं और कष्ट भोगते हैं। श्राद्घ पक्ष आने पर विभिन्न योनियों में पड़े पितृगण श्राद्घ की इच्छा से अपनी संतानों के घर के दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। पितृपक्ष के 15 दिनों तक जो व्यक्ति अपने पितरों को श्रद्घापूर्वक अन्न-जल भेंट करते हैं और उनके नाम से ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, वह पितरों के आशीर्वाद से उसके पितृदोष में कमी आती है। वहीं, जो लोग पितृपक्ष में पितरों का श्राद्घ नहीं करते हैं, उनकी संतान की कुंडली में पितृदोष लगता है और अगले जन्म में वह भी इस दोष से पीड़ित होकर कष्ट भोगते हैं। 

अन्य कारण

-जो लोग जीवित अवस्था में अपने माता-पिता का अनादर करते हैं, अगले जन्म में उनकी कुंडली में पितृदोष लगता है।  इसके अलावा सर्प हत्या या किसी निरपराध की हत्या से भी यह दोष लगता है। 

– धर्म के विरुद्ध आचरण जैसे गुरु की पत्नी, पुत्री या अन्य स्त्री से अनैतिक संबंध, मांस-मदिरा का सेवन करना, किसी को बेवजह सताना, उधार लेकर धन वापस न करना, दूसरों का धन हड़पना, झूठी गवाही देना, पित्तरों के नाम से दान ना देना आदि भी पितृ दोष के कारण बनते है।

 
पितृदोष के कारण भूत-प्रेत का डर 


जिसके परिवार में खून के रिश्ते में कोई पानी में डूब गया हो या आग में जलकर मौत हुई हो, या शस्त्र द्वारा हत्या की गई हो, या कोई औरत तड़प-तड़प कर मर गई हो या मारी गई हो, उनको प्रेत-दोष भुगतना पड़ता है। कई बार बाहरी भूत प्रेतों का भी असर हो जाता है। जैसे किसी समाधि या कब्र का अनादर अपमान किया हो या किसी पीपल-बरगद जैसे विशेष वृक्ष के नीचे पेशाब किया हो, इससे भी यह दोष शुरू हो जाता है।

 
भूत-प्रेत कौन और कैसे

जैसे मनुष्यों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि जाति भेद हैं, उसी प्रकार उनकी भूत-प्रेत भी जातियां या भेद सुविधानुसार किए गए हैं। इनमें भूत-प्रेत, जिन्न,ब्रह्म, राक्षस, डाकिनी-शाकिनी आदि मुख्य हैं। जिनकी किसी दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, वे भूत प्रेत बन जाते हैं।

1. जिसका जीवन में किसी ने ज्यादा शोषण किया हो, जिनको धोखे से किसी ने ठगा या हानि पहुंचाई हो। वे बदले की भावना में भूत प्रेत योनी स्वीकार कर लेते हैं।

2. आत्महत्या या जहर देकर जिनकी हत्या हुई हो।

3. जिनकी मरते समय कोई इच्छा अतृप्त रह जाती है, वे भूत प्रेत योनी में अथवा जन्म की सुरक्षा हेतु इस योनी में जन्म लेते हैं।

4. जो पापी कामी क्रोधी और मूर्ख होते हैं, भूत प्रेत बन जाते हैं।

प्रेत बाधाग्रस्त व्यक्ति की पहचानजो व्यक्ति प्रेत बाधित होता है उसकी आंखें स्थिर अधमुंदी और लाल रहती हैं। शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होता है। हाथ पैर के नाखून काले पड़े होते हैं। भूख कम लगती है या फिर बहुत अधिक भोजन करता है। नींद आती ही नहीं या आती भी है तो बिलकुल कम। स्वभाव क्रोधी, जिद्दी उग्र और उदंड हो जाता है। प्यास अधिक लगती है। शरीर से दुर्गंध और पसीना निकलता है।


sparsh dhyan
स्पर्श ध्यान

कहते हैं स्पर्श में बहुत ताकत होती है। बच्चा मां के स्पर्श को तुरंत पहचान…

Read More